
क्यों समझती है यह दुनिया औरतों को कठपुतली ?
दर्जा तो हमें भी ईश्वर ने इंसानो का दिया था ।
कहते है सब कि अदब से , तमीज़ से रहो ,
यह सीख आख़िर कोई मर्दों को क्यों नहीं देता ?
छुट्टी के दिन भी जो पूरे घर का काम करे ,
वही है औरत जिसका सब तिरस्कार करे ।
त्याग दिए जिसने अपनी पहचान , माता पिता तथा घर बार ,
ऋण ना तुम कभी उस बलिदान का पाओगे उतार ।
बार – बार पवित्रता पर जिसके लगता है लांछन ,
वही औरत है जिसने तुम्हें जन्मा है ।
औरतों की सीरत अगर कपड़ों से होती ,
तो हर औरत सती सावित्री होती ।
छोटे कपड़े पहने देख , होता है जब शोषण ,
विकृत व छोटी सोच होती है रोशन ।
जिसने नौ महीने खून से सींचा हो तुम्हें ,
उसको क्या अपनी ताक़त का रोब दिखाते हो ।
आसिफ़ा , ज़ैनब , प्रियंका व दामिनी थे जिनके शिकार ।
है उनके ज़मीर व इंसानियत पर धिक्कार ।
जिसके बिना पूरी नहीं है यह कायनात ,
वही औरत है जिसने बढ़ाया है यह संसार ।
बदलेगी नहीं यह दुनिया व सोच जब तक ,
अगर बदलने की पहल खुद से की हो ।
A self composed poem to through light on the scenario of women and their relative situation and condition in our society and world .
True words. I am agree with this poem. 🙏🙏🙏
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Thank u so much ..
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आभार
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Very True Mam
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Thank u for your positive support 😊
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Are u professional in poetry !!
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No it was like my first poem ..
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oh great.., so It’s as a Habit!!
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Yeah
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so mam where do u work !!
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I m pursuing Bachelor of Arts and yet not working ….
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great ur in to which domain mam
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